Kaash Ke Wo Binayak Sen Na Hota
If only he weren’t Binayak Sen;
a poem by Rizvi Amir Abbas Syed
काश के वो सिखों का हत्यारा होता, या गुजरात के नरसंघार में शामिल होताकाश के वो प्राइवेट अस्पताल के लुटेरे डाक्टरों में से एक होताकाश के वो किसी मल्टीनेशनल कंपनी का दलाल होताकाश के वो राष्ट्रीय धरोहर को बेचने वाला बनिया होता
If only he were a murderer of Sikhs, or involved in the massacre in Gujarat
If only he were one of the malpractitioners at a private hospital
If only he were an agent of a multinational company
If only he were a merchant of national property
काश के वो हिंसा प्रेरित करने वाले सलवा-जुडूम का सदस्य होताकाश के वो भाषा, धर्म, मस्जिद, मंदिर के नाम पर रथ यात्रा निकाल पाताकाश के वो घूसखोर पुलिस का अफसर होताकाश के वो किसान की मेहनत से उपजे अनाज को सडा़ने वाला कृषि मंत्री होता
If only he were a member of violence inciting Salwa Judum
If only he could conduct a Rath Yatra on the name of language, religion, mosque, or a temple
If only he were a corrupt police officer
If only he were an agriculture minister letting the grain produced by hardworking farmers rot
काश के वो त्रिशूल बाँटने वाला धार्मिक गुरु होताकाश के वो टीवी चेन्नलों पर नफरत फैलाने वाला कठमुल्ला होताकाश के वो जंगलों को उजाड़ कर खदान बनाने वाला मंत्री होताकाश के वो पुलिस और सेना के अत्याचार पर गर्व करने वाला राष्ट्रवादी होता
If only he were a religious guru distributing Trishools to people
If only he were a hate spewing Mullah on TV channels
If only he were a minister uprooting forests to make way for mines
If only he were a nationalist who feels proud about tortures committed
by the armed forces and the police
काश के वो अहम् की खातिर इंसानियत की बलि चढा़ने वाले वक्तव्य देताकाश के उसके हृदय में करुना और दया नाम की कोई चीज़ न होतीकाश के वो अपने सारे सुख और चैन तो त्याग कर गाँव की सेवा में ना जाताकाश के वो भी हम आप जैसे सोये हुए नागरिकों में से एक होता
If only he would make a public statement on sacrificing humanity for one’s pride
If only he didn’t have any compassion or empathy in his heart
If only he didn’t leave his cozy life and went to villages for social work
If only he was a sleeping citizen like you or I
काश के वो भी अपने परिवार और व्यापार में व्यस्त और मस्त होताकाश के वो महात्मा गाँधी के आदर्शों का मजा़क़ उडा़ पताकाश के वो डाक्टरों द्वारा ली गयी शपथ का पालन नहीं करताकाश के वो भ्रष्ट अन्यायपालिका और दबंगों के आगे घुटने टेक देता
If only he was happily immersed in his family and businesses
If only he would mock Gandhi’s ideals
If only he wouldn’t follow the Hippocratic oath
If only he would surrender to corruption, injustice and bullies
काश के वो घूस लेकर आतंक को भारत में प्रवेश देने वाला सुरक्षा कर्मी होताकाश के वो देश को गरीबों और किसानो की समस्या से बहकाने वाली न्यूज़ सुनाताकाश के वो नोबेल शांति पुरूस्कार के विजेता ओबामा साहब के साथ नाचता गाताकाश के उसका दिल मानवाधिकार के लिए नहीं धड़कता
If only he was a security guard letting terror enter India for a bribeIf only he would deliver news to distract people from the issues of the poor and the farmersIf only he would sing and dance with the Nobel Peace Prize winner Mr. ओबामा, If only his heart wouldn’t beat for human rights
तो आजबिनायक देश का खलनायक नहीं कहलातान कोई कार्यवाही होती, न ही देशद्रोही का इलजा़म गढा़ जाताउम्र कै़द की जंजीरों से दूर वो भी सम्मानीय और स्वतंत्र होताकाश, काश, काश !!!
Then today Binayak wouldn’t be called a villain in this country
There wouldn’t be any prosecution, nor a charge for treason
He would be free and far from the chains of life imprisonments, and well respected
If only though, if only.
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